बिजलियों की हँसी उड़ाने को ख़ुद जलाता हूँ आशियाने को रो रहा है अगरचे दिल फिर भी मुस्कुराता हूँ मुस्कुराने को मुतलक़न दिलकशी न थी उस में कौन सुनता मिरे फ़साने को छीन ली उस ने ताक़त-ए-परवाज़ आग लग जाए आशियाने को 'शाद' इतना ही हम समझते हैं हम समझते नहीं ज़माने को