बिकेगी उस की ही दस्तार तय है कि जिस की क़ीमत-ए-किरदार तय है हुआ था हादिसा कुछ और लेकिन लिखेगा और कुछ अख़बार तय है बड़े आँगन पे इतराओ न इतना उठेगी उस में भी दीवार तय है है नालायक़ मगर सरदार का है बनेगा बेटा ही सरदार तय है है मुंसिफ़ ही गिरफ़्तार-ए-तअ'स्सुब अदालत में हमारी हार तय है न ले जा हम को उस महफ़िल में ऐ दिल जहाँ होना ज़लील-ओ-ख़्वार तय है हुनर है ऐसे रिश्तों को निभाना जहाँ हर बात पर तकरार तय है सदा सच बोलते हो तुम भी 'आज़म' तुम्हारे वास्ते भी दार तय है