बिखर गया है जो मोती पिरोने वाला था वो हो रहा है यहाँ जो न होने वाला था और अब ये चाहता हूँ कोई ग़म बटाए मिरा मैं अपनी मिट्टी कभी आप ढोने वाला था तिरे न आने से दिल भी नहीं दुखा शायद वगर्ना क्या मैं सर-ए-शाम सोने वाला था मिला न था प बिछड़ने का ग़म न था मुझ को जला नहीं था मगर राख होने वाला था हज़ार तरह के थे रंज पिछले मौसम में पर इतना था कि कोई साथ रोने वाला था