बिखर जाएगी शाम आहिस्ता बोलो तड़क जाएँगे जाम आहिस्ता बोलो न दो दाग़ों के भेद आहों को रोको न लो नालों का नाम आहिस्ता बोलो न ले तन्हाई की रातों में इक दिन ख़मोशी इंतिक़ाम आहिस्ता बोलो यही होते हैं आदाब-ए-मोहब्बत कि जब लो उस का नाम आहिस्ता बोलो न जाने कौन बैठा हो कमीं में अँधेरी है ये शाम आहिस्ता बोलो फ़ुग़ान-ए-दिल से किस का दिल पसीजा ये है सौदा-ए-ख़ाम आहिस्ता बोलो अभी तो राह में दीवार-ओ-दर हैं अभी दो चार गाम आहिस्ता बोलो बहुत है सदमा-ए-यक-आह उस को है नाज़ुक ये निज़ाम आहिस्ता बोलो अभी तो बादा-ए-उल्फ़त का 'हक़्क़ी' पिया है एक जाम आहिस्ता बोलो