बिखरी हुई है यूँ मिरी वहशत की दास्ताँ By Ghazal << जान-ए-अय्याम-ए-दिलबरी है ... हैं अश्क मिरी आँखों में क... >> बिखरी हुई है यूँ मिरी वहशत की दास्ताँ दामन किधर किधर है गिरेबाँ कहाँ कहाँ निकले उस अंजुमन से तो पहलू में दिल न था आए जो ढूँडने तो वो बोले यहाँ कहाँ ऐसे में क्या चले हो 'मुबारक' चमन को तुम बुलबुल कहाँ बहार कहाँ बाग़बाँ कहाँ Share on: