बिखरा है कई बार समेटा है कई बार ये दिल तिरे अतराफ़ को निकला है कई बार जिस चाँद के दीदार की हसरत में है दुनिया वो शाम ढले घर मिरे उतरा है कई बार सुन कर तुझे मदहोश ज़माना है मुझे देख जिस ने तिरी आवाज़ को देखा है कई बार अफ़्सोस कि है इश्क़-ए-यगाना से बहुत दूर यारो तुम्हें हर रोज़ जो होता है कई बार