बिल-यक़ीं पैकर-ए-शबाब है वो जिस की नज़रों का इंतिख़ाब है वो एक ख़ाकी हूँ मैं तो गर्द-आलूद मेरे चेहरे की आब-ओ-ताब है वो आग सी धूप में हूँ महव-ए-सफ़र छाँव बन कर जो हम-रिकाब है वो मैं जो महदूद हूँ तलातुम तक मेरे इदराक में हबाब है वो फिर भी लाज़िम मुताला मेरा यूँ तो इक बाब हूँ किताब है वो उस की जानिब सभी रुजूअ' करें कुल सवालात का जवाब है वो जिस की ता'बीर है उसी के पास मेरी हस्ती का ऐसा ख़्वाब है वो इस की तस्दीक़ आसमान करे रेग-ज़ारों का क्या सहाब है वो जिस की बू-बास हर बदन में है गुलशन-ए-ज़ीस्त का गुलाब है वो ये तुम्हारी नज़र का धोका है एक सहरा हूँ मैं सराब है वो अश्क से हो कि ख़ून से निस्बत एक इक बूँद का हिसाब है वो उस का कोई तो हो सुबूत 'फ़िगार' कौन मानेगा इंक़लाब है वो