बीमार हैं गो इश्क़ में तो क्या करे कोई दिल के मरीज़ को यूँ न कोसा करे कोई ज़र को जहाँ में ले के चुकाते हैं जैसे सब एहसान को भी ऐसे चुकाया करे कोई दौलत ज़रूरी जैसे समझते हैं सब यहाँ रिश्ते ज़रूरी वैसे ही समझा करे कोई दुनिया में ग़म के बोझ तले दब गया हूँ मैं जीने की एक वजह बताया करे कोई मंज़िल तलाशने में ये जीवन गुज़र रहा हिम्मत यहाँ पे मेरी बढ़ाया करे कोई नाकामियों की तीरगी में खो गया हूँ मैं अब रौशनी सफ़र में दिखाया करे कोई गर मिल गए ख़ुदा तो करूँ उन से अर्ज़ मैं ग़म और दर्द से न सताया करे कोई इख़्लास में बदन की जगह रूह को मिला लब की जगह जबीं पे तो बोसा करे कोई इस हिज्र में तलब मेरी पहले से बढ़ गई अब वस्ल के फ़साने सुनाया करे कोई इक अर्से से हँसा नहीं ग़म के सबब से मैं दैर-ओ-हरम में उस को बताया करे कोई वालिद ख़फ़ा हैं नौकरी मैं कर नहीं रहा अपने सुख़न को कैसे ख़सारा करे कोई हर कोई भागता है गुहर की तलाश में 'कातिब' के जैसे नाम कमाया करे कोई