बिना रोए गुज़रना उस गली से लगा ऐसा गए हम ज़िंदगी से जिया हूँ उम्र भर मैं भी अकेला उसे भी क्या मिला नाराज़गी से हूँ जिसका मुंतज़िर अगले जनम तक मिली तो क्या कहूँगा उस परी से लहू में रोज़ अपने ही नहाना मैं आजिज़ आ गया हूँ शाएरी से झलक इक मौत की देखे तो मानूँ जिसे डर लग रहा है ज़िंदगी से कोई फिर से दिलाए एक जीवन थकन होती नहीं आवारगी से कई जज़्बों का घर था जैसे मैं भी मिरी परतें खुलीं दीवानगी से कई चेहरे दिखे पर ब'अद उन के मोहब्बत हो गई बे-चेहरगी से किसी सूरत अलग होने न पाई तिरी तस्वीर मेरी शाएरी से खड़ा जब से हूँ मैं अपने मुक़ाबिल उलझता ही नहीं हूँ मैं किसी से तिरी यादें हैं या सूरज है कोई ये आँखें बुझ रही हैं रौशनी से उमीदें थी हमें भी चाँद से पर मोहब्बत है उसे अब तीरगी से ज़रूरत क्या है मन में झाँकने की करो, गर बात कर पाओ नदी से मिरे आँसू जो तुम झरने से बह जाओ समुंदर तक पहुँच जाऊँ इसी से