बिसात-ए-रंग-ओ-बू आतिश-फ़िशाँ मालूम होती है रग-ए-गुल में निहाँ बर्क़-ए-तपाँ मालूम होती है तमन्ना ही से क़ाएम है वक़ार-ए-नौजवानी भी तमन्ना गरचे जिंस-ए-राएगाँ मालूम होती है किनारा है कोई इस का न इस का कोई साहिल है मोहब्बत एक बहर-ए-बे-कराँ मालूम होती है गुज़िश्ता वारदातों पर मैं जब भी ग़ौर करता हूँ मुझे हर वारदात इक दास्ताँ मालूम होती है वफ़ा-कोशी का जज़्बा सर्द पड़ जाता है पीरी में वफ़ा परवर्दा-ए-फ़िक्र-ए-जवाँ मालूम होती है असर बाक़ी अभी तक है निगाहों में जवानी का मुझे हर एक शय अब भी जवाँ मालूम होती है जफ़ा-ओ-जौर के क़िस्से हैं अब भी मो'तबर 'फ़ारिग़' वफ़ा की बात ज़ेब-ए-दास्ताँ मालूम होती है