बिसात-ए-वक़्त पे सदियों के फ़ासले हम लोग कनार-ए-शाम-ओ-सहर में कहाँ ढले हम लोग न कारवाँ न मुसाफ़िर मगर जरस न थमी न रौशनी न हरारत मगर जले हम लोग मक़ाम जिन का मुअर्रिख़ के हाफ़िज़े में नहीं शिकस्त ओ फ़त्ह के माबैन मरहले हम लोग नुमूद-ए-जिस्म की शोरीदा ख़्वाहिशें दुनिया फ़िशार-ए-रूह के नादीदा वलवले हम लोग न जाने कब कोई करवट हमें जगा डाले ज़मीं के बत्न में ख़्वाबीदा ज़लज़ले हम लोग फ़साद-ए-कोह-कनी हीला-हा-ए-परवेज़ी हज़ार रंग के काँटों में आबले हम लोग अमीर-ए-शहर की मोटी समझ में क्या आते ज़मीर-ए-दहर के नाज़ुक मुआ'मले हम लोग हुजूम-ए-संग-ए-अज़िय्यत में सर झुकाए हुए रवाँ हैं ले के मशिय्यत के क़ाफ़िले हम लोग ज़बाँ-बुरीदा ओ बे-दस्त-ओ-पा सही लेकिन ज़मीर-ए-कौन-ओ-मकाँ हैं बुरे भले हम लोग