अपने वा'दों को फ़रामोश न कर देना था साज़-ए-अल्ताफ़ को ख़ामोश न कर देना था अपनी नज़रों से अगर मुझ को किया था ओझल अपने दिल से तो फ़रामोश न कर देना था नहीं आता था अगर होश में लाना तुम को किसी कम्बख़्त को बेहोश न कर देना था हर-नफ़स मौत के क़दमों की सदा सुनने को ज़िंदगी को हमा-तन-गोश न कर देना था आँसुओं में फ़क़त अब मुझ को नज़र आते हो इस तरह तो मुझे ग़म-कोश न कर देना था न उठाना था दर-ए-मय-कदा-ए-नाज़ से अब वर्ना पहले मुझे मय-नोश न कर देना था हश्र भी या तो बहिश्त-आफ़रीं करना था मिरा या मिरी क़ब्र को गुल-पोश न कर देना था इस तरह ज़हमत-ए-फ़र्दा को बढ़ाने के लिए मुझ को ख़मयाज़ा-कश-ए-दोश न कर देना था आँख में देख कर आँसू मुझे रश्क आता है इतना वीरान तो आग़ोश न कर देना था दफ़्तर-ए-नाज़ पे कुछ बार न था इस का नियाज़ अपने 'बिस्मिल' को सुबुक-दोश न कर देना था