बीते हुए लम्हों के जो गिरवीदा रहे हैं हालात के हाथों वही रंजीदा रहे हैं इन जल्वों से मामूर है दुनिया मिरे दिल की आईनों की बस्ती में जो नादीदा रहे हैं रिंदान-ए-बला-नोश का आलम है निराला साक़ी की इनायत पे भी नम-दीदा रहे हैं बरसों ग़म-ए-हालात की दहलीज़ पे कुछ लोग गुल कर के दिए ज़ेहनों के ख़्वाबीदा रहे हैं हर दौर में इंसान ने जीती है ये बाज़ी हर दौर में कुछ मसअले पेचीदा रहे हैं इंसान की सूरत में कई रंग के पत्थर हम सीने पे रक्खे हुए ख़्वाबीदा रहे हैं मुजरिम की सफ़ों में हैं वो मज़लूम भी जिन से 'नजमी' ने जो कुछ पूछा तो संजीदा रहे हैं