ब-ज़ाहिर तो बदन-भर का इलाक़ा घेर रक्खा है मगर अंदर से हम ने शहर सारा घेर रक्खा है मैं पसपा फ़ौज-ए-दिल का आख़िरी ज़ख़्मी सिपाही हूँ मगर इक उम्र से दुश्मन को तन्हा घेर रक्खा है कभी इस रौशनी की क़ैद से बाहर भी निकलो तुम हुजूम-ए-हुस्न ने सारा सरापा घेर रक्खा है मुसीबत में पड़ा है इन दिनों मेरा दिल-ए-वहशी समझ कर शहर वालों ने दरिंदा घेर रक्खा है मोहब्बत का ख़ुदा हूँ मैं मगर ऐसा ख़ुदा जिस ने बड़ी मुश्किल से अपना एक बंदा घेर रक्खा है बहुत पहले कभी पैदा हुए और मर गए थे हम इसी माज़ी ने मुस्तक़बिल हमारा घेर रक्खा है कोई ईमान वाला अहल-ए-मस्जिद से कहे जा कर ख़ुदा को क्यूँ उन्होंने काफ़िराना घेर रक्खा है चलो हम फ़रहत-'एहसास' अपना मस्जिद से छुड़ा लाएँ ख़ुदा वालों ने इक काफ़िर हमारा घेर रक्खा है