ब-नाम-ए-इश्क़ यही एक काम करते हैं ये ज़िंदगी का सफ़र उस के नाम करते हैं अजब नहीं दर-ओ-दीवार जैसे हो जाएँ हम ऐसे लोग जो ख़ुद से कलाम करते हैं ये माह-रू भी तो होते हैं आँसुओं की तरह किसी की आँख में कब ये क़याम करते हैं ग़ज़ब की धूप है अब के सफ़र में हम-नफ़सो किसी के साया-ए-गेसू में शाम करते हैं तुम्ही ने साथ दिया ज़िंदगी की राहों में किताब-ए-उम्र तुम्हारे ही नाम करते हैं कुछ इस तरह तिरी आँखों में अश्क हैं जैसे शब-ए-सियह में सितारे ख़िराम करते हैं अजीब लोग हैं 'तारिक़-नईम' शहर के भी ये तीर-ए-हिज्र दिलों में नियाम करते हैं