ब-रंग-ए-ख़्वाब मैं बिखरा रहूँगा तिरे इंकार जब चुनता रहूँगा कभी सोचा नहीं था मैं तिरे बिन यूँ ज़ेर-ए-आसमाँ तन्हा रहूँगा तू कोई अक्स मुझ में ढूँडना मत मैं शीशा हूँ फ़क़त शीशा रहूँगा ताअफ़्फ़ुन-ज़ार होती महफ़िलों में ख़याल-ए-यार से महका रहूँगा जियूँगा मैं तिरी साँसों में जब तक ख़ुद अपनी साँस में ज़िंदा रहूँगा गली बाज़ार बढ़ती वहशतों को मैं तेरे नाम ही लिखता रहूँगा