ब-तर्ज़-ए-दिलबरी बे-दाद कीजे जफ़ाओं में अदा ईजाद कीजे हमारी आजिज़ी एजाज़ हो जाए पयम्बर हूँ अगर आज़ाद कीजे ये कैसा आलम-ए-बाला का झगड़ा अजी पहलू मिरा आबाद कीजे लहू मल कर शहीदों में मिले हैं हमारे नाम पर भी साद कीजे तमन्ना बढ़ न जाए हद से ज़ाएद हमें शाह-ए-नजफ़ अब याद कीजे हमारी ख़ाक से सहरा भरे हैं जहाँ तक चाहिए बर्बाद कीजे इशारों ने तो ले ली जान साहिब ज़रा मुँह से भी कुछ इरशाद कीजे परेशान है बहुत 'अंजुम' ख़ुदारा शहीद-ए-कर्बला इमदाद कीजे मिज़ाज-ए-यार हो जाए न बरहम न ऐ 'अंजुम' बहुत फ़रियाद कीजे