बू-ए-ख़ुश की तरह हर सम्त बिखर जाऊँगा आहनी हाथों से अब कोई दबा दे मुझ को मैं तो मुद्दत से चला आता हूँ पीछे पीछे गर्दिश-ए-वक़्त कभी रुक के सदा दे मुझ को दिन तो सारा ही कटा मिस्ल-ए-चराग़-ए-कुश्ता गर्मी-ए-जिस्म सर-ए-शाम जला दे मुझ को तुम मुझे देख के जो बात कभी कह न सके क्या ये मुमकिन नहीं आईना बता दे मुझ को जिन को पाने से हक़ीक़त भी फ़साना बन जाए अब 'सबा' ऐसे सराबों का पता दे मुझ को