बुझा ली प्यास जो उस ने रहा नदी का नहीं ग़रज़ का अपनी सगा है वो आदमी का नहीं अजीब चाह है उस की भी देखिए तो ज़रा सभी हों उस के भले वो हुआ किसी का नहीं ख़ुशी में उस की न आए नज़र उदास कोई मगर उदासी में उस की गुज़र ख़ुशी का नहीं मैं उस के चेहरे पे लूटी हुई चमक का गवाह कहा जो दुख है ये मेरा भी है उसी का नहीं