बुलबुल ने जिसे जा के गुलिस्तान में देखा हम ने उसे हर ख़ार-ए-बयाबान में देखा रौशन है वो हर एक सितारे में ज़ुलेख़ा जिस नूर को तू ने सर-ए-कनआन में देखा बरहम करे जमइय्यत-ए-कौनैन जो पल में लटका वो तिरी ज़ुल्फ़-ए-परेशान में देखा वाइज़ तू सुने बोले है जिस रोज़ की बातें उस रोज़ को हम ने शब-ए-हिज्रान में देखा ऐ ज़ख़्म-ए-जिगर सूदा-ए-अल्मास से ख़ू कर कितना वो मज़ा था जो नमक-दान में देखा 'सौदा' जो तिरा हाल है इतना तो नहीं वो क्या जानिए तू ने उसे किस आन में देखा
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