बूंदों की तरह छत से टपकते हुए आ जाओ बरसात का मौसम है बरसते हुए आ जाओ ख़ुश्बू हो तो झोंके की तरह फूल से निकलो दिल हो तो मिरी जान धड़कते हुए आ जाओ दो गाम पे मय-ख़ाना है दफ़्तर से निकल कर इस भीगते मौसम में टहलते हुए आ जाओ मौसम के बहाने गुल-ओ-गुलज़ार निकल आए तुम भी कोई बहरूप बदलते हुए आ जाओ