चाह में उस की दिल ने हमारे नाम को छोड़ा नाम किया शग़्ल में उस के शौक़ बढ़ा कर काम को छोड़ा काम किया ज़ुल्फ़ दुपट्टा धानी मैं कर के पिन्हाँ मिरा दिल बाँध लिया सैद न खावे क्यूँ-कर जल जब सब्ज़े में पिन्हाँ दाम किया रम पर अपने आहू-ए-दिल को ग़र्रा निहायत था लेकिन चंचल आहू-ए-चश्म ने उस को एक निगह में राम किया समझे थे यूँ हम दिल को लगा कर पावेंगे याँ आराम बहुत हैफ़ उसी फ़हमीद ने हम को क्या क्या बे-आराम किया हम ने कहा जब नाज़-ए-बुताँ के तुम तो बहुत काम आए 'नज़ीर' सुन के कहा क्या आए जी हाँ कुछ बुत के मुआफ़िक़ काम किया