चाहे जुगनू कि सितारा कि गुहर में रहना तुम बहर-रंग बहर-शक्ल नज़र में रहना थक के रस्ते में कहीं बैठ न जाना राही चलते रहना कि मुक़द्दर है सफ़र में रहना तेरे इक रोज़ के दीदार में है कितनी कशिश रोज़ का काम हुआ तेरी डगर में रहना ख़ूबसूरत तो बहुत है ये तिरा गाँव मगर कोई दिन आ के हमारे भी नगर में रहना मौत के बाद फिर इक गर्दिश-ए-पैहम की ख़बर टूटे पत्तों का हवाओं के भँवर में रहना अज़दहा भीड़ का फिर तुम को निगल जाएगा दूर होना तो बस इतना कि नज़र में रहना एक धड़का सा लगा रहता है बारिश में 'असीर' घर में रहते हुए आसाँ नहीं घर में रहना