चाहते हैं घर बुतों के दिल में हम हैं जुनूँ की आख़िरी मंज़िल में हम गीत गाते हैं क़फ़स मंज़िल में हम कोसते जाते हैं लेकिन दिल में हम ये तो मत महसूस होने दीजिए अजनबी हैं आप की महफ़िल में हम मय-कदे के चोर-दरवाज़े भी हैं आ तो जाएँ शैख़ की मंज़िल में हम ख़ुद-फ़रेबों को पयाम-ए-आगही मुब्तला हैं सई-ए-ला-हासिल में हम दूर से आता है मुबहम सा जवाब दें उसे आवाज़ जिस मंज़िल में हम रोक लें पलकों पे आँसू की तरह क्या समो दें मौज को साहिल में हम सोचिए आख़िर वो क्या हालात हैं जा रहे हैं कूचा-ए-क़ातिल में हम जी न मैला कीजिए फ़रियाद पर हैं पशेमाँ आप-अपने दिल में हम हम ग़लत रुज्हान रखते थे कि आप आप से पूछेंगे मुस्तक़बिल में हम ना-शनासान-ए-अदब के हाथ से 'शाद'-साहिब हैं बड़ी मुश्किल में हम