चैन दम भर को सर-ए-शाम कहाँ होता है दिल सुलगता हो तो आराम कहाँ होता है नर्गिस-ए-नाज़ से जो मुझ को अता होता था अब मिरे हिस्से में वो जाम कहाँ होता है अपनी हिम्मत ही से होती है शिकायत मुझ को शिकवा-ए-गर्दिश-ए-अय्याम कहाँ होता है प्यार वो खेल नहीं जिस का हो अंजाम ब-ख़ैर दिल मगर वाक़िफ़-ए-अंजाम कहाँ होता है आदतन शाम को उठ जाती हैं मेरी नज़रें और वो चाँद सर-ए-बाम कहाँ होता है दिल ही दिल में मैं तिरा नाम लिया करता हूँ मेरे होंटों पे तिरा नाम कहाँ होता है राह-ए-दुश्वार-ए-वफ़ा ज़ेर-ए-क़दम है लेकिन हौसला दिल को बहर-गाम कहाँ होता है इल्तिफ़ात एक बड़ा वस्फ़ है सब जानते हैं ये मगर शेवा-ए-असनाम कहाँ होता है किस को मिलती है यहाँ हुस्न-शनासी यारो तोहफ़ा-ए-ज़ौक़-ए-नज़र आम कहाँ होता है कुछ ख़बर है तुझे 'मग़मूम' कि तुझ सा शाइ'र लाख गुमनाम हो गुमनाम कहाँ होता है