चाक की ख़्वाहिश अगर वहशत ब-उर्यानी करे सुब्ह के मानिंद ज़ख़्म-ए-दिल गरेबानी करे जल्वे का तेरे वो आलम है कि गर कीजे ख़याल दीदा-ए-दिल को ज़ियारत-गाह-ए-हैरानी करे है शिकस्तन से भी दिल नौमीद या रब कब तलक आबगीना कोह पर अर्ज़-ए-गिराँ-जानी करे मय-कदा गर चश्म-ए-मस्त-ए-नाज़ से पावे शिकस्त मू-ए-शीशा दीदा-ए-साग़र की मिज़्गानी करे ख़त्त-ए-आरिज़ से लिखा है ज़ुल्फ़ को उल्फ़त ने अहद यक-क़लम मंज़ूर है जो कुछ परेशानी करे