चल मान लिया साहब-ए-किरदार नहीं हूँ पर तेरी तरह हाज़िर-ए-दरबार नहीं हूँ दुश्मन है मुसाफ़िर तो उसे साफ़ बता दो दीवार हूँ मैं साया-ए-दीवार नहीं हूँ अतराफ़ में हर चीज़ का इदराक है मुझ को ख़्वाबों में घिरा दीदा-ए-बेदार नहीं हूँ ख़ामोश ही रहना है मिरे वास्ते बेहतर मैं आप का पैराया-ए-इज़हार नहीं हूँ अब तो हदफ़-ए-संग-ए-मलामत न बनाओ अब तो मैं सर-ए-कूचा-ए-दिलदार नहीं हूँ दिल तोड़ने वाले को ख़बर हो कि अभी मैं सर-ता-ब-क़दम इक दिल-ए-बीमार नहीं हूँ