चल नहीं सकते वहाँ ज़ेहन-ए-रसा के जोड़-तोड़ उन की चालें हैं क़यामत की बला के जोड़-तोड़ है नज़र-अंदाज़ कोई कोई मंज़ूर-ए-नज़र देखना उस बुत की चश्म-ए-फ़ित्ना-ज़ा के जोड़-तोड़ कज-अदाई बात है जिस की लगावट खेल है सीख ले उस फ़ित्ना-गर से कोई आ के जोड़-तोड़ पा के क़ाबू करते हैं अहल-ए-ग़रज़ क्या दाँव-घात चलते हैं मतलब की चालें मुद्दआ' के जोड़-तोड़ दोस्त बन कर करते हैं नेकी के पर्दे में बदी राज-निय्यत ये है देखो अग़निया के जोड़-तोड़ सख़्तियाँ उस्ताद हैं इंसाँ की दुनिया में 'हबीब' करते हैं मग़्लूब को ग़ालिब सिखा के जोड़-तोड़