चल रहे हैं वो ऐसी शान से आज जैसे आए हों आसमान से आज आस्तीं में जो उन की था कल तक तीर निकला है वो कमान से आज शम्अ' के इर्द-गर्द परवाने हाथ धोएँ न अपनी जान से आज अपना सब कुछ लुटा के होश आया शैख़-जी मिल रहे हैं ख़ान से आज गुल खिलाएँगे क्या अभी कुछ और लग रहे हैं वो मेहरबान से आज कर रहे हैं जो वादा-ए-फ़र्दा फिर गए अपनी वो ज़बान से आज न मिटा दे वो उन का नाम-ओ-निशाँ आह निकली है जो ज़बान से आज भूल बैठे हैं अपनी जो औक़ात गिर पड़ें वो न आसमान से आज कह रहे हैं वो आ के 'बर्क़ी' से जाओ निकलो मिरे मकान से आज