चले जाएँगे सब अस्बाब हैरानी न जाएगी किसी सूरत दिल-ओ-जाँ की ये अर्ज़ानी न जाएगी सो अब तय है न जाएँगी ये दिल की वहशतें जब तक रगों में इस उमडते ख़ूँ की तुग़्यानी न जाएगी सबब ये है कि पहले हो चुका है फ़ैसला सो अब गवाही दी तो जाएगी मगर मानी न जाएगी तुझे उस दर से लेना था नया रंज-ओ-अलम हर पल दिल-ए-वहशत-असर तेरी तन-आसानी न जाएगी खुला ये ख़ून की वहशत है सो मैं मर तो सकता हूँ मिरे अंदर से लेकिन ख़ू-ए-सुल्तानी न जाएगी मयस्सर आएँगी हर पल बहुत आसाइशें लेकिन मुझे मालूम है अब दिल की वीरानी न जाएगी