चलो चल कर वहीं पर बैठते हैं जहाँ पर सब बराबर बैठते हैं न जाने क्यूँ घुटन सी हो रही है बदन से चल के बाहर बैठते हैं हमारी हार का एलान होगा अगर हम लोग थक कर बैठते हैं तुम्हारे साथ में गुज़रे हुए पल हमारे साथ शब भर बैठते हैं बताओ किस लिए हैं नर्म सोफ़े क़लंदर तो ज़मीं पर बैठते हैं तुम्हारी बे-हिसी बतला रही है हमारे साथ पत्थर बैठते हैं