चलो कुछ तो राह तय हो न चले तो भूल होगी अभी बंद हर गली है जो खुलेगी तूल होगी तिरे हुस्न की वदीअत मिरी जुरअत-ए-नज़ारा तिरे रू-ब-रू झुकेगी तो नज़र की भूल होगी मिरे हम-सफ़र बढ़ेंगे मुझे रास्ता बता कर मिरे पाँव से उड़ी है मिरे सर पे धूल होगी मुझे क़िबला-रू बिठा कर मिरे हाथ उठाने वालो ये यक़ीन भी दिला दो कि दुआ क़ुबूल होगी चलो मान लें ये दोनों कोई शय है मस्लहत भी न सितम का दिल दुखेगा न वफ़ा मलूल होगी तिरा फ़न-ए-क़िस्सा-गोई अभी दार तक ही पहुँचा मिरे शौक़ की कहानी अभी और तूल होगी वो लहू की धार 'अफ़ज़ल' जो है क़र्ज़ ख़ंजरों पर न करेंगे हम तक़ाज़ा न कभी वसूल होगी