चलो माना कि फुर्तीले नहीं थे मगर इतने भी हम ढीले नहीं थे ख़यालों में सजा लेते थे उन को हमारे शौक़ ख़रचीले नहीं थे मज़ा मंज़िल को पा कर भी न आया सफ़र में रेत के टीले नहीं थे हवेली में सभी रहते थे मिल कर तब इतने रिश्ते ज़हरीले नहीं थे कभी आते थे ख़त उन के भी 'कलकल' वो पहले इतने शर्मीले नहीं थे