चलो तुम भी मुक़द्दर आज़मा लो हमारे नाम का सिक्का उछालो मैं अपने आप में धंसने लगी हूँ मुझे मेरी ही दलदल से निकालो गुहर कम हैं ख़ज़फ़-रेज़े ज़ियादा अभी कुछ और दरिया को खँगालो चलो करते हैं तज्दीद-ए-तअल्लुक़ पुरानी रंजिशों पर ख़ाक डालो मिरा माज़ी मिरे दर पर खड़ा है मुझे तुम अपने दामन में छुपा लो बहुत मुश्किल घड़ी आई हुई है घड़ी की सूई को आ कर सँभालो तुम्हारे साथ जीना चाहती हूँ मुझे बे-मौत मरने से बचा लो बुझा सकते नहीं हो आग जब तुम कम-अज़-कम आग में घी तो न डालो तअ'स्सुब का धुआँ दम घोटता है कहाँ मर-खप गए रौशन ख़यालो तवज्जोह चाहिए तुम को जो 'रख़्शाँ' कभी तुम भी किसी को घास डालो