चमकती आँख में सहरा दिखाई साफ़ देता है मिरे लहजे में सन्नाटा सुनाई साफ़ देता है मैं इक असरार-ए-मातम लाख ख़ुद में गुम हुआ जाऊँ मगर सीना किसी शय की दुहाई साफ़ देता है वो क्या क्या बात करता है न इक पल भी बिछड़ने की मगर लहजा कि एहसास-ए-जुदाई साफ़ देता है सफ़ें यूँ तो मुक़ाबिल दुश्मनों की हैं मगर उन में अजब इक मेहरबाँ चेहरा दिखाई साफ़ देता है मैं आ पहुँचा हूँ ऐ 'बानी' अजब अंधी जगह माना है अब भी एक रस्ता जो सुझाई साफ़ देता है