चंद घड़ियाँ नहीं गुज़री थीं शनासाई को शो'ला-अंदाम चले आए पज़ीराई को कौन जाने वो हसीं था कि तमन्ना मेरी ढूँड लाई थी कहीं से मिरी रुस्वाई को अक्स ठहरा था मिरे दीदा-ए-तर में कब से आईना ढूँड न पाया रुख़-ए-ज़ेबाई को टूट कर रेज़ा हुए जाते हैं सब ख़्वाब मिरे कह दो गिर्या न करे चश्म-ए-तमाशाई को बाद-ओ-बाराँ भी नहीं बाम नहीं दर भी नहीं कोई छीनो न मिरे गोशा-ए-तन्हाई को अपने एहसास पे खींचो न लकीरें 'शहनाज़' तोड़ भी डालो बुत-ए-रहज़न-ए-बीनाई को