चाँद के साथ जब वो चलता था अक्स तालाब से उभरता था यार औरों की बात करता था रंग तस्वीर में बदलता था जो तिरी हसरतों पे हँसता था वो मिरी बेबसी पे रोता था बंद कमरे में जब टहलता था अक्स दीवार से निकलता था सामने से कहाँ गुज़रता था वो जो वारफ़्तगी से मिलता था पेड़ का साँस भी अखरता था जब परिंदा उड़ान भरता था