चंद ला-ख़िताब आँखें चंद बे-लक़ब चेहरे हसरतों के आईने बे-हसब-नसब चेहरे पारे साबित-ओ-सालिम आइनों में हैं जब कि होते जाते हैं आख़िर मस्ख़ किस सबब चेहरे पानियों ने बिल-आख़िर रेशा रेशा कर डाला अक्स-रेज़ियाँ कब तक करते जाँ-ब-लब चेहरे डूब जब गईं आँखें साथ साथ सूरज के निकले सैर करने को घाटियों से तब चेहरे आँख पर न रखते थे कल किसी को लेकिन अब मौसमों के आगे हैं कैसे बा-अदब चेहरे कौन ख़ुश-निगाही का दे सुबूत 'रहमानी' आइना-गज़ीदा हैं आज सब के सब चेहरे