चाँद तो खिल उठा सितारों में हम सुलगते रहे शरारों में दिल-ए-वहशत-ज़दा का हाल न पूछ फूल मुरझा गए बहारों में आँसुओं के चराग़ रौशन हैं देख फिर तेरी रहगुज़ारों में काएनात और भी निखर जाए रंग भर दो अगर नज़ारों में फूल खिलते हैं हर बरस उन पर दफ़्न है कौन इन मज़ारों में मेरे सारे ख़ुलूस की दौलत बाँट दो जा के ग़म के मारों में मैं तो राही हूँ तेरी मंज़िल का और तू गुम है चाँद-तारों में