चाँदनी शब भर टहलती छत पे तन्हा रह गई प्यार की हर याद-ए-रंगीं बे-सहारा हो गई जोश दरिया का बना था क़हर कश्ती के लिए बेबसी में ना-तवाँ पतवार रुस्वा हो गई दास्तान-ए-ज़िंदगी की जब किरन ख़ामोश थी तब हवा भी सुन के चुप सारा फ़साना रह गई फूल पत्ते जब चमन से दर-ब-दर होने लगे पुर सकूँ सरसब्ज़ दुनिया बन के सहरा रह गई हर गली में लुत्फ़ का दरिया रवाँ था 'साहनी' मेरी ख़्वाहिश ऐसी रुत में फिर भी तन्हा रह गई