चाँदनी-रात में अंधेरा था इस तरह बेबसी ने घेरा था मेरे घर में बसी थी तारीकी घर से बाहर मगर सवेरा था वो किसी और का हुआ है आज वो जो कल तक तो सिर्फ़ मेरा था उड़ गए आस के सभी पंछी जिन का दिल में मिरे बसेरा था बस वहीं 'जोश' का मज़ार है आज कल जहाँ बेवफ़ा का डेरा था