चराग़ बाक़ी रहा न अब आइना रहेगा मगर शगुफ़्त-ए-जमाल का सिलसिला रहेगा हज़ार चौकस रहीं कड़ी तीरगी के दाई' मिरे तसव्वुर में एक रौज़न खुला रहेगा यक़ीन आया है आज अलवाह-ए-संग पढ़ कर कि इस नगर में बस एक नाम-ए-ख़ुदा रहेगा यही रहेगा अगर मिरी बे-कसी का आलम दुआएँ बच पाएँगी न दस्त-ए-दुआ' रहेगा सियाह पड़ने लगेगी शम-ए-विसाल की ज़ौ खिला हुआ रात-भर जो रंग-ए-हिना रहेगा मिरी तरह नींद आ नहीं पाएगी उसे भी मैं जानता हूँ वो सुब्ह तक जागता रहेगा कहाँ मिटाने से मिट सकेगा वो नक़्श दिल से ग़ुबार सा आइने पे इक अक्स का रहेगा ख़याल रहता है नींद में अब उसी परी का जो फूल अब शाख़ पर खिलेगा खिला रहेगा सफ़र हो पाताल का कि सैर-ए-फ़लक हो 'साजिद' जहाँ रहूँगा ज़मीन से राब्ता रहेगा