चराग़ जल तो रहे हैं मगर अंधेरा है न जाने शहर में क्या और होने वाला है अंधेरा घर सही लेकिन बहुत उजाला है न जाने आज यहाँ कौन आने वाला है ये शख़्स देखने में अजनबी नहीं लगता न जाने कौन सी बस्ती का रहने वाला है न गुफ़्तुगू में तसल्ली न ख़ामुशी में सदा सुलूक-ए-दोस्त का अंदाज़ ही निराला है वो जिस के वास्ते सदियाँ गुज़ार दीं हम ने वो एक लम्हा बहर-हाल आने वाला है वो बे-नियाज़ सही फिर भी उस से कह दो 'नाज़' ये दिल का रिश्ता है कब टूट जाने वाला है