चराग़ की ओट में है मेहराब पर सितारा रुका हुआ है अभी गुल-ए-ख़्वाब पर सितारा ये किस रवानी में डूबती जा रही हैं आँखें चमक रहा है ये क्यूँ रुख़-ए-आब पर सितारा रुकी हुई है ज़मीन पानी के मिंतक़े पर ठहर गया है निगाह-ए-बेताब पर सितारा कहीं मिरी धूप की हुकूमत है आइने पर झुका हुआ है कहीं ज़र-ए-आब पर सितारा मुहीत में घूमते रहेंगे अगर सफ़ीने सियाह पड़ने लगेगा गिर्दाब पर सितारा सुना था इस रात के मुक़ाबिल भी आईना है मगर दिखाई दिया है महताब पर सितारा मैं हूँ किसी रात की सियाही का रिज़्क़ लेकिन तलाश करता हूँ रू-ए-अहबाब पर सितारा