चराग़-ए-शौक़ जला कर कहाँ से जाना था हमें तो हो के सफ़-ए-दुश्मनाँ से जाना था ये दिल ये शहर-ए-वफ़ा कब उसे पसंद आया वो बे-क़रार था उस को यहाँ से जाना था नज़र में रक्खा नहीं एक भी सितारा तिरा कि ख़ाक-ज़ाद थे हम आसमाँ से जाना था किसी बहाने सही ज़िंदगी का क़र्ज़ उतरा हमें तो वैसे भी इक रोज़ जाँ से जाना था नदी में रह के चटानों से दरगुज़र करना ये हम ने फ़ितरत-ए-मौज-ए-रवाँ से जाना था