चराग़ों का कलेजा भुन रही हैं हवाएँ दर्द किस का सुन रही हैं बहुत मसरूफ़ हैं साँसें हमारी अभी जीने की चादर बुन रही हैं ये उड़ती रंग-बिरंगी तितलियाँ क्या शगुफ़्ता फूल दिल का चुन रही हैं पहाड़ी राग जब नदियों ने छेड़े उछलती लहरें ख़ुद सर धुन रही हैं चमकती बिजलियों पे ग़ौर करना हमारे होश का नाख़ुन रही हैं