हुस्न के जल्वे लुटाए तिरी रा'नाई ने राज़ सब खोल दिए एक ही अंगड़ाई ने रंग भर कर तिरी तस्वीर में जज़्ब-ए-ग़म का अपनी तस्वीर बना दी तिरे सौदाई ने वस्ल-ए-महबूब की तदबीर सुझाई मुझ को हक़-परस्ती ने अक़ीदत ने जबीं-साई ने हम ने सोचा था कि बुझ जाएँगे ग़म के शो'ले आ के कुछ और हवा दी उन्हें पुर्वाई ने शोरिश-ए-दहर ने बेगाना किया ख़ुद से मुझे आगही बख़्शी मुझे गोशा-ए-तन्हाई ने एक मा'सूम से चेहरे पे रऊनत की नुमूद हाए क्या ज़ुल्म किया आलम-ए-बरनाई ने गर्दिश-ए-वक़्त ने मयख़ाने में दम तोड़ दिया जाने क्या चीज़ पिला दी तिरे सहबाई ने रुख़ तमाशे का बदल डाला अचानक आ कर एक ख़ुश-चेहरा ख़ुश-अंदाज़ तमाशाई ने चर्ख़ आपस के तअ'ल्लुक़ का ये अंदाज़ भी देख कर दिया उन को भी रुस्वा मिरी रुस्वाई ने