चश्म-ए-अना से बादा-ए-ग़म पी रहा था वो कल रात अपने आप में डूबा हुआ था वो मुझ को मिरे वजूद से बाहर जो ले गया मेरे ही रूप में कोई बहरूपिया था वो शोर उस को ज़िंदगी का सुनाई नहीं दिया शायद किसी की चाह में डूबा हुआ था वो महशर में मुझ को पूछ रहा था हर एक से मा'लूम बाद में हुआ मेरा ख़ुदा था वो मुझ सा ही शख़्स कोई मिरे आइने में था मुझ को ही देख देख के घबरा रहा था वो 'अफ़रोज़' आया सामने यूँ उस के दिल का चोर तस्वीर मेरी देख के शर्मा रहा था वो