चश्म-ए-मय-गूँ वहाँ शराब लज़ीज़ दिल-ए-सोज़ाँ यहाँ कबाब लज़ीज़ लब-ए-शीरीं के बोसे पाए हैं हम ने देखा है आज ख़्वाब लज़ीज़ दहन-ए-ज़ख़्म होंठ चाटते हैं उस की तलवार में है आब लज़ीज़ कहाँ तल्ख़ी कहाँ ये मीठा-पन इस अरक़ से है कब गुलाब लज़ीज़ उस के सेब-ए-ज़क़न के आशिक़ हैं होगा महशर के दिन हिसाब लज़ीज़ मीठी बातों में वस्ल का इंकार है नए तरह का जवाब लज़ीज़ कैसे शाने के दाँत पड़ते हैं है जो वो ज़ुल्फ़ मुश्क-ए-नाब लज़ीज़ तुरशियाँ किस मज़े मज़े की हैं है हमें यार का शबाब लज़ीज़ मर न जाए सनम मरीज़-ए-हिज्र शर्बत-ए-वस्ल दे शिताब लज़ीज़ हो सकेगा न वस्फ़-ए-सेब-ए-ज़क़न ऐ 'सख़ी' है ये बे-हिसाब लज़ीज़