चश्म-ए-तर जाम दिल-ए-बादा-कशाँ है शीशा मोहतसिब आज किधर जाम कहाँ है शीशा बज़्म-ए-साक़ी में जो आवाज़ नहीं क़ुलक़ुल की इस क़दर आज ये क्यूँ पम्बा-दहाँ है शीशा मोहतसिब संग लिए हाथ में और सू-ए-फ़लक दम-ब-दम चश्म-ए-दहन से निगराँ है शीशा पाँव रखता ही नहीं नाज़ से बाला-ए-ज़मीं कफ़-ब-कफ़ बज़्म में साक़ी की रवाँ है शीशा है तराविश में 'बक़ा' इस से मय-ए-नाब-सुख़न है बजा कहिए अगर अपना दहाँ है शीशा